भारत के भाल का बुरा हाल
आरदणीय मुख्यमंत्री जी आपको सादर करुण वंदन।
मुख्यमंत्री जी मैं इस प्रदेश का एक ऐसा युवा हूं, जो निराशा के अंधकार में अपने अस्तित्व को ढूंढ रहा है। सारे उपक्रम असफल हो जाने पर विचार आया कि अपनी समस्या आपके समक्ष रखूं।
मुख्यमंत्री जी मेरी निराशा के कई कारण हैं । निराशा का सबसे बड़ा कारण यह है कि मैं युवावस्था में ही जीवन के ऐसे मोड़ पर पहुंच गया हूं कि बता नहीं सकता दोराहे पर खड़ा हूं या चौराहे पर। मेरी हालत तो इस वक्त चक्रव्यूह में फंसे उस अभिमन्यु की भांति है, जिसके चारों ओर कथित सज्जनों का वास्तविक षडयंत्र घूम रहा है।
अब मेरी व्यथा सुनिए। मेरी पहली प्राथमिकता सरकारी नौकरी थी। ताकि घरवाले मुझ पर गर्व कर सकें और मेरे पड़ोसी मेरे लिए अपने किसी रिश्तेदार की सोलह पास या बी.एड. करने वाली होनहार लड़की का रिश्ता ला सकें। आप जानते हैं कि प्रदेश में सरकारी मुलाजिमों का कितना महत्व है लेकिन आपकी सरकार तो कर्मचारियों की बढती जा रही हड़तालों से परेशान है। ऐसे में नई नौकरियां आप शायद ही खोल पाएं। आपकी सरकार का दर्द समझते हुए मैंने ठाना कि दिल्ली चला जाऊं लेकिन किसी प्राइवेट खून चूसने वाली कंपनी में बारह-चौदह घंटे की ड्यूटी के बाद कुछ ओवरटाइम करके यदि पांच-दस हजार रुपए बचाकर होली-दीवाली मनाने घर आऊंगा तो कहीं रास्ते में जहर खुरानी न लूट लें, इस बात का डर भी है। अब आप ही बताओ मैं क्या करूं? असल बात तो यह है कि प्रदेश के प्रत्येक युवा की यही पीड़ा है।
मैंने लोगों से सुना है कि आप शिक्षक भी रह चुके हैं पर शिक्षा का स्तर इस प्रदेश में लगातार गिरता जा रहा है। पहाड़ों से अधिकांश अध्यापक देरहादून अटैच हो रहे हैं। आपने छापेमारी की लेकिन, बड़ी मछलियां अभी भी तैर रही हैं। प्रदेश की राजधानी का तो बहुत ही बुरा हाल है। हर गली में एक कालेज खुला हुआ है। कुकुरमुतों की तरह उगे इन नकली कालेजों के असली डिग्रीधारी कहां जाएंगे? महोदय इस प्रदेश के निर्माण हेतु पहाड़वासियों का बलिदान आपसे छुपा नहीं है। क्योंकि आप अपने भाषणों में इस बात का जिक्र हमेशा करते हैं लेकिन वर्तमान हालत ठीक नहीं है। आपके मंत्री अधिकांश समय कार्यक्रमों के उद्घाटन करने में व्यस्त रहते हैं। वैसे मेलों के उदघाटन तो आप भी खूब कर रहे हैं। गौचर मेले का शुभारंभ करने तो आप सीधे दिल्ली से आए और वापस फिर दिल्ली चले गए। सरकार के दावे और वादे भी खूब होते हैं और आपने भी खूब घोषणाएं की हैं। घोषणाओं पर अमल हो इस पर संदेह है!
आपकी पार्टी ने लालबत्तियों पर काफी बवाल मचाया था लेकिन आपकी सरकार ने तो सारे रिकार्ड ही तोड़ डाले। अधिकांश दायित्वधारियों को तो उनके कर्तव्य और अधिकारों की जानकारी ही नहीं है। वैसे सूचना आयोग में आयुक्त के पद पर एक नाममात्रा की नियुक्ति आपने की तो है लेकिन सुना है कि सरकारी वकील होते हुए यह महाशय हाईकोर्ट में सरकार के ऊपर लाखों का जुर्माना लगवा चुके हैं।
वैसे हो सकता है कि विपक्ष के ‘आर्थिक संकट में प्रदेश` संबंधी आरोप को झूठा साबित करने हेतु आप लालबत्तियों का सहारा लेकर यह बताना चाह रहे हों कि देखो प्रदेश में पैसा बहुत है। आपकी गतिविधियां देखकर लगता नहीं कि प्रदेश में पैसे की कहीं कमी है। सरकार के एक हैलीकाप्टर का इंजन तो शायद चौबीस घंटे ही चालू रहता है। क्योंकि टी.वी. चैनलों से मुझे पता चलता है कि आप दिल्ली, नैनीताल, शिमला, हल्द्वानी, गोपेश्वर एक ही दिन में कवर कर देते हैं। जनता के लिए सरकारी जहाज की यात्रा ठीक है लेकिन शिबू सोरेन के शपथ ग्रहण में आप यहां का पैसा बर्बाद करके गए ही क्यों? आपकी सरकार में गंगा के माध्यम से पर्यावरण बचाने की जोरदार मुहिम चला दी गई है लेकिन बेहतर होता कि पॉलिथीन विरोधी नारे पॉलिथीन से खरतनाक प्लास्टिक के बैनरों पर न लिखे जाते।
पलायन के बारे में क्या कहूं! अब तो नरेंद्र सिंह नेगी के पलायन विरोधी गीतों का भी कोई असर नहीं होता। आप अपने मिशन २०२० की बात करते हैं। एक सुझाव है, प्रदेश में अवसर पैदा करें और युवा को रोकने का कोई उपक्रम करें। वर्ना आपको आने वाले चुनावों में बंदरों, लंगूरों तथा भालूओं से वोट मांगने पड़ेंगे, जिनके दांत व नाखून बड़े खरतनाक होते हैं। अंत में एक प्रश्न आपके ऊपर छोड़ता हूं, जिसका मुझे हर हाल में जवाब चाहिए। आप युवा हैं, मैं भी। आप जोशीले हैं और मुस्कुराते रहते हैं। मैं भी जोशीला हूं लेकिन मुस्कुरा नहीं पाता हूं। यह अंतर क्यों? जबकि आपका साहित्य तो पैरवी करता है कि राज्य का प्रथम और अंतिम व्यक्ति दोनों समान होने चाहिए। इसका अर्थ निकलता है कि आपका साहित्य गलत है या फिर सत्ता में आने पर इसकी परिभाषा बदल गई है। कृपया मेरा संदेह दूर करें।
महोदय शिकायतें तो बहुत हैं लेकिन डर है कि कहीं लंबी चौड़ी चिट्ठी को पत्रिका वाले छापे ही ना। इन बेचारों की रोजी भी तो आपके करम पर ही टिकी होती है। महोदय इस प्रदेश का प्रत्येक व्यक्ति हजारों रुपए के कर्ज में दबा हुआ है। कहीं ऐसा तो नहीं कि दिन-रात हवाई भ्रमण करने पर आपको राज्य सुंदर लग रहा है यदि ऐसा है तो सावधान…। तुरंत धरती पर उतरें। कहीं ऐसा न हो कि प्रदेश कर्ज के बोझ तले धंस जाए और आप हवा में ही रह जाएं। वैसे इस सबके बाद आप तो अपने आकाओं की कृपा से दिल्ली में भी व्यवस्थित हो सकते हैं लेकिन हमारा क्या होगा? जरा इस पर भी सोचिएगा। आप हमें भारत का भाल कहते हैं और भाल का ऐसा हाल?
-प्रदीप सती ( मास कॉम)
दून वि.वि. दे.दून
aur mehnat ki jarroorat hai writer ko. Substance ki kammi hai
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